मन्नत का धागा

#ज्योति 

मन्नत का धागा


    आज '15 जून है'। कोर्ट से निकलते हुए जया ने नीलेश से कहा बदले में नीलेश बस 'हूँ' कह कर सपाट भाव से आगे बढ़ गया पर ना जाने  क्यों जया अब तक 15 जून के उस वाकये को भुला न सकी थी जब नीलेश ने पहली बार उसके सामने घुटने टेक कर हाथों में इंग्लिश गुलाब और कनॉट प्लेस से खरीदी उसकी फेवरेट ट्रेंडी अंगूठी के साथ मिनार रेस्तरॉ की हसीन शाम में उसे अपनी जीवन संगिनी बनाने की गुज़ारिश की थी तो मानों उसे अपने सपनों का संसार मुक्कमल होता नज़र आया और जब वह रेस्तरॉ से निकल कर घर जा रही थी तो नीलेश का उसके माथे पर जड़ा पहला चुम्बन और घर पहुँच कर फोन करने की हिदायत के साथ लव यू टेककेअर और दूर तक हिलता हुआ उसका हाँथ वो आज तक न भूल पाई थी। कैब में बैठी जया का मन मानो सागर सा हिलोरें ले रहा था और उसके होंठों पर मंद -मंद मुस्कान उसे यूँ ही छेड़ रही थी हल्की बूंदाबांदी शुरू हुई तो उसने अपने चेहरे को बाहर निकाल आजकल पावँ ज़मी पर नही पड़ते मेरे......... गुनगुनाना शुरू कर दिया।

    अचानक रीमा की विजय भाव वाली कर्कश आवाज़ से जया की तंद्रा टूटी जो बिलबिलाते हुए कह रही थी 
फाइनली ! आज तुझे इस बेशर्म अक्खड़ देहाती से मुक्ति मिल ही गई ।
और आखिर मिलती भी क्यों नहीं हमने भी बड़े जबरदस्त पैंतरे खेले थे कोर्ट में! इतराते हुए रीमा ने कहा
इतना सुनकर नीलेश की मां भी चुप न रह सकी और बोली हां-हां तुम्हारी बहन भी कोई 'हूर की मल्लिका' ना है जो उसे तलाक देने में हमें कोई एतराज होता, यह तो मेरे बेटे का दिमाग खराब था जो इस नकचढ़ी को घर उठा लाया। मुझे तो पहले ही दिन से इसके लक्षण ठीक ना लगे थे।

 इस पर रिया ने चिढ़कर कहा अब बस भी करो आंटी आपके बेटे के लिए क्या ना किया इस बिचारी ने अपनी नौकरी छोड़ घर का काम काज सम्हाल लिया। मुझे तो पहले ही पता था यह बेशर्म निठल्ला धोखेबाज ही निकलेगा।
इसे तो जया की कभी कोई कदर ही ना थी वह तो हमारी दौलत पर नजर थी। इसीलिए तो इसने जया को अपनी मीठी-मीठी बातों में फंसा लिया। 

    नीलेश की माँ चिहुँक कर बोली ऐसा क्या दिया है दहेज में, जो बड़ी दौलत का रट्टा मार रही हो, दहेज़ से ज्यादा कीमत तो हमारे दिए गहनों की है। इस पर भी तुम लोगों को शर्म नहीं आती वैसे भी कोर्ट में बारह लाख रुपए का हर्जाना भी हम पर ही बोला है। 

    अब क्यों हंगामा मचा रखा है जया के पापा ने लगभग चीखते हुए कहा कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है ना! 
अब जल्दी से घर चलो और लिस्ट में लिखा अपना- अपना सामान लेकरएक दूसरे का पीछा छोड़ो ।
इस पर सभी चुप्पी साध कोर्ट से सीधा पार्किंग की साइड बढ़ गए और नीलेश के घर के लिए निकल पड़े।
जया को दहेज के सभी सामान नीलेश के घर से खुद ही इकट्ठे करने थे सो उसके साथ जाना पड़ा। 
    नीलेश के परिजन जो कि एक अर्से से गांव में ही रहते थे कोर्ट के फैसले के लिए दिल्ली  आए थे नीलेश ने उन्हें बस स्टॉप पर छोड़ दिया और जया के पिताजी को भी किसी काम से जाना था इसलिए वह रीमा को अपने साथ ले गई अब जया और रीमा नीलेश की गाड़ी में पीछे की सीट पर साथ बैठ गईं, नीलेश ने जया की तरफ विंडस्क्रीन सेट की तो वह विंडो से बाहर देखने लगी,  किसी ने भी आपस में बात ना की । 

    घर पहुंचते ही नीलेश ने अपनी पॉकेट से चाबी निकालकर फ्लैट ओपन कर दिया जया ने काँपते कदमों से घर के अंदर प्रवेश किया जया आज अपने ही घर में अजनबी की तरह महसूस कर रही थी | जया को अपना बिताया हुआ हर पल याद आने लगा, घर के कोने में जाले लटक रहे थे नीलेश की फाइलें कॉफी टेबल पर यूं ही पड़ी हुई थी और सोफे पर बैठने की बिल्कुल भी जगह नहीं थी। यहाँ वहां बस चादर, कपड़े फैला रखे थे सामान को साइड में करते हुए निलेश ने जया को बैठने का इशारा किया पर जया आगे बढ़ गई ।  
और अपने पर्स से लिस्ट निकाल ली जिसे देखते ही निलेश ने कहा ठीक है
 तुम अपना सामान इकट्ठा कर लो मैं दूसरे रूम में जा रहा हूँ जया ने भी धीरे से हां में सर हिला दिया और बेडरूम की तरफ बढ़ गई जहां अभी तक उसकी हनीमून की तस्वीरें बेड के पीछे बड़े से फ्रेम में लगी हुई थीं पर अब उन पर काफी धूल चढ़ चुकी थी उन्हें देखकर उसे अपना वह मस्ती भरा समय याद आने लगा उनमें से एक तस्वीर में वह दोनों एक पेड़ पर मन्नत का धागा बांध रहे थे। सातों जन्म अलग ना होने की कसमें खाते हुए यह मन्नत का धागा दोनों ने बड़ी शिद्दत से उस पेड़ से बांधा था हनीमून के इतने सारे फोटो देखकर जया का दिल भर आया लेकिन उसने खुद को संभालते हुए स्टोर रूम की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए जो सीढ़ियों के ऊपर जाकर बना हुआ था वहां बहुत सारी चीजें रखी हुई थी जो कभी इस्तेमाल में नहीं आती थी, उन्हें देख कर एक पल को उसे लगा क्या इन चीजों को ले जाने का कोई फायदा होगा जो पहले ही उसने कबाड़ में निकाल दी थीं। 

यूँ तो पहले ही लव मैरिज होने के कारण दोनों के पास बहुत ज्यादा दहेज का सामान ना था और जो था भी वह या तो आउटडेटेड था या फिर उसकी पसंद का ना था।  कितनी शिद्दत से उसने अपने घर को अपनी पसंद से सजाया था एक सामान भी लेना होता तो पूरा मार्केट छान लेती। 

 बस एक फ्रिज़ था जो किचन के कोने में अभी तक उसी तरह पड़ा हुआ था जो उसे दहेज के नाम पर दिखा।  अनमने ढंग से वह दूसरे रूम की तरफ बढ़ी जहां नीलेश विंडो की तरफ मुंह किए खड़ा हुआ था
जया ने धीरे से अपनी उंगलियों के सहारे से दरवाजे को नॉक किया तो नीलेश ने खुद को संभालते हुए पूछा
"हो गया जया"

 जया कुछ ना बोली और गहनों भरी एक पोटली निलेश की तरफ बढ़ाते हुए बोली यह तुम्हारे हैं सो तुम्हें लौटाने आई थी।  निलेश जया की तरफ मुड़कर बोला नहीं चाहिए। रख लो !
तुम्हारे काम आएंगे क्या पता कब जरुरत पड़ जाये।
क्यों नहीं चाहिए तुमने तो कोर्ट में बहुत जोर शोर से अपने गहनों के लिए क्लेम किया था और मुझे बहुत बुरा भला भी कहा था।

फिर अब क्यों नहीं! 
कोर्ट की बातें मत करो जया,कोर्ट की बात कोर्ट में ख़त्म हो गई वहां तो तुमने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी मुझे दुनिया का सबसे बुरा आदमी साबित करने में, क्या मैं वाकई इतना बुरा हूं इतना सुनते ही जया की आंखें नम हो गईं पर वह खुद को संभालते हुए पोटली मेज पर रख कर दरवाजे की तरफ बढ़ गई और बोली मुझे भी तुमसे कोई कम्पलसेशन मनी नहीं चाहिए साथ ही मैं कोई सामान भी यहां से नहीं ले जा रही बस एक आख़िरी बार अपना घर देखना चाहती थी शायद।  

जया रूम से बाहर निकलती इससे पहले ही नीलेश ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी ओर करते हुए कहा हो सके तो यह मंगलसूत्र मुझे दे दो 
क्योंकि इसकी ज्यादा कीमत भी नहीं है, और अब ये तुम्हारे किसी काम का भी नहीं,
 पर शायद मुझे इस घर में अकेले रहने का सहारा मिल जाए। 

 इतना कहते ही उसने जया के बालों को आगे की तरफ करते हुए मंगलसूत्र
 के हुक को खोलना ही चाहा था पर जया ने आगे बढ़कर उसे ज़ोर से अपने हाथों से पकड़ लिया
नीलेश ! आज तक  नहीं बदले तुम। तड़प कर जया ने कहा। 

आज भी बहुत स्वार्थी हो बस खुद की परवाह है, पर मेरे बारे में कुछ नहीं सोचा। 
नीलेश ने जया की आंखों में आंखें डालते हुए कहा तो क्या जया आज भी.........

    कोई फायदा नहीं नीलेश अब हम अलग हो चुके हैं कोर्ट ने भी फ़ैसले पर अंतिम मुहर लगा दी है।
 जया बोल ही रही थी कि रीमा कमरे में आ गई और नीलेश को घूरते हुए बोली दूर रहो बेशर्म इंसान और जया का हाथ पकड़कर बाहर की तरफ खींचने लगी।पर आज जया ने एक न सुनी और अपना हाथ छुड़ाकर कहा रहने दो दीदी आज कुछ मत कहो।जया के तेवर देख रीमा बोली ठीक है चलो जल्दी से नीचे आ जाओ और हां सामान कल  पैकर्स से पहुँच जायेगा। इतना कहकर रीमा नीचे उतर गई

 उसके जाते ही नीलेश जया के सामने अपने हाथ बांधकर घुटनों के बल बैठ गया- "मत जाओ जया, क्या हम फिर से साथ नहीं रह सकते"

 इतना सुनते ही जया स्तभ्ध रह गई और एक बार फिर से 10 साल पहले की 15 जून की शाम उसकी आँखों में तैर गई 5 सालों में इस लड़ाई में मानो यही वह बात थी जो अभी तक कहीं नहीं गई थी और शायद जया को इसी की तलाश थी। 

जया पछाड़ खाकर बेड पर बैठ गई निलेश अभी भी घुटनों के बल वहीं बैठा हुआ उसे निहार रहा था।
 "अब तक क्यों नहीं कहा नीलेश" जया ने रुंधे गले से कहा।
  तुमने मौका ही कहाँ दिया जया उस वक्त तुम इतने गुस्से में थी और फिर अचानक तुम्हारी मां आ गईं और तुम चली गई| 

 तुम घर भी तो आ सकते थे जया ने शिकवा किया |  मैं आया था जया, पर रीमा ने कहा तुम मुझसे मिलना नहीं चाहतीं| 

  और फोन उसका क्या तुमने मुझे एक फोन तक नहीं किया। जया मैंने हजारों कॉल किए तुमने मेरा नंबर ब्लॉक कर रखा था 

  क्या मैंने नंबर ब्लॉक कर दिया था इस बात से जया को ज़ोर सा झटका लगा और उसने अपना फोन चेक किया| अरे ये... मैंने तो...

पर माँ और दी तो हमेशा यही कहते रहे की तुम किसी और के साथ.....
हाँ जया मेरी माँ ने भी तो यही कहा था की जया तेरे साथ रहना ही नहीं चाहती पर जब कोर्ट से निकलते वक़्त तुमने 15 जून इस तरह कहा तो मुझे यकीन आ गया की तुम शायद अभी तक वो प्यार अपने दिल में महसूस करती हो जो मैंने तुम्हारे दिल में जगाया था। 

जया यकीन करो आज तक मैं तुम्हे उसी शिद्दत से चाहता हूँ | आज दोनों को पता चला कि छोटी सी बात कब बहस का मुद्दा बनकर तलाक के कागजों के रूप में उन दोनों के हाथ में आ चुकी थी उन्हें पता ही ना चला। 

    उनका प्रेम विवाह जैसे तैसे दोनों के परिवारों ने स्वीकार तो कर लिया था पर अपने अहम पे लगी चोट ने उन्हें कभी उसकी सफलता के लिए तैयार ना होने दिया शायद इसीलिए तो एक छोटे से मुद्दे ने उनका घर तोड़ने में कोई कसर न छोड़ी और किसी को भी उनके निर्णय को गलत साबित करने में जरा भी देर न लगी। 

नीलेश के हाथो में अपना हाथ रख जया ने तलाक के कागज आगे बढ़ा दिए जिसे फाड़कर दोनों ने अंतिम फैसला ले लिया और बस इतना ही कहा 'काश प्रेम विवाह को भी परिवार सात जन्मों का साथ समझ सकते। 
शायद ये मन्नत के धागे का असर  था कि आज वो दोनों फिर से एक मजबूत और कभी न टूटने वाली डोरी में बांध चुके थे। 

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